Sunday, June 20, 2010

छात्र विकास हेतु किये जाने वाले कार्यक्रम


सरस्वती विद्यामन्दिरों में छात्रों के विकास हेतु अनेकों प्रकार के कार्यक्रम किये जाते हैं।
जैसे:-

व्यक्तित्व विकास शिविरां का आयोजन
घोष संगीत, जूडो तथा लक्ष्यभेद आदि विषयों का प्रशिक्षण।
प्रश्नमंच प्रतियोगिता का आयोजन।
� विद्यालय स्तर से लेकर अखिल भारतीय स्तर तक खेलकूद समारोह का आयोजन।
� विज्ञान मेला, वैदिक गणित, विज्ञान प्रश्नमंच तथा संस्कृति प्रश्नमंच का आयोजन।
� संस्कृति ज्ञान परीक्षा का आयोजन।
� विभिन्न प्रकार की लेखन कला का विकास करने हेतु देवभूमि पत्रिका का प्रकाशन।

विद्यालय स्तर पर होने वाले 7 अनिवार्य कार्यक्रम


छात्रों के विकास हेतु विद्यालय स्तर पर भी अनेकों कार्यक्रम आयोजित होते हैं जिनमें से 7 अनिवार्य कार्यक्रम प्रत्येक विद्यामन्दिर में आवश्यक हैं यथा :
1. वार्षिक उत्सव
2. अभिभावक सम्मेलन, मातृ सम्मेलन
3. अभिभावक सम्पर्क
4. भारत माता पूजन कार्यक्रम (15 अगस्त व 26 जनवरी को)
5. पूर्वोतर क्षेत्र में शिक्षा प्रसार हेतु बसन्त पंचमी, वर्ष प्रतिपदा को समर्पण दिवस।
6. खेल दिवस
7. पथ संचलन/शारीरिक प्रदर्शन के कार्यक्रम।

पांच आधारभूत विषयों का प्रशिक्षण


बालक शारीरिक दृष्टि से सबल, प्राणिक दृष्टि से सन्तुलित, मानसिक दृष्टि से सदाचारी, बौद्धिक दृष्टि से सत्यान्वेषी एवं आध्यात्मिक दृष्टि से समाजसेवी बनें इस हतु पांच आधारभूत विषयों का शिक्षण प्रत्येक बालक को कराया जाता है :

� शारीरिक
� संगीत
� योग
� संस्कृत
� नैतिक एवं आध्यात्मिक

बालक सद्व्यवहारी हो इस हेतु बालक को घर में करने हेतु 10 बिन्दुओं का आग्रह होता है :


1. प्रात: उठकर प्रात: स्मरण बोलना।
2. माता पिता व बड़ों को प्रणाम करना।
3. प्रतिदिन आसन तथा सूर्य नमस्कार करना।
4. भोजन करने से पूर्व भोजन मंत्र बोलना तथा थाली में जूठन न छोड़ना।
5. स्वाध्याय करना।
6. स्नान तथा ईश वन्दना करना।
7. घर में अच्छे देशभक्ति एवं ईश्वर भक्ति गीत के गीत बोलना।
8. स्वदेशी वस्तुओं का प्रयोग करना।
9. जन्मदिन भारतीय पद्धति से मनाना।
10. कोई सृजनात्मक कार्य करना।

विद्यालय में अभिनव पंचपदी शिक्षण पद्धति द्वारा शिक्षण


आज की शिक्षण पद्धति का आधार पश्चिमी देशों में विकसित मनोविज्ञान है जो विशुद्ध भौतिकवादी दृष्टिकोण पर आधारित है। हिन्दू जीवन दर्शन पर आधारित शिक्षा दर्शन के अनुसार बालक के सवांर्गीण विकास की अवधारणा विशुद्ध आध्यात्मिक है। परिपूर्ण मानव के विकास की संकल्पना पश्चिमी मनोविज्ञान पर आधारित शिक्षण पद्धति के द्वारा पूर्ण होना सम्भव नहीं है। विद्या भारती ने भारतीय मनोविज्ञानका विकास किया है और उसी पर अपनी शिक्षण पद्धति को आधारित किया है तथा उसका नामकरण पंचपदीय शिक्षण पद्धति किया है इसके पांच भाग हैं :

� अधिति
� बोध
� अभ्यास
� प्रयोग
� प्रसार


आचार्यों के विकास हेतु कार्यक्रम


1. प्रतिवर्ष नवीन एवं पुरातन आचार्यों हेतु 3 दिवसीय आचार्य विकास वर्ग का आयोजन।
2. नवीन आचार्यों हेतु 30 दिवसीय आचार्य प्रशिक्षण वर्ग का आयोजन।
3. समय समय पर विषयश: वर्गों का आयोजन।
4. संस्कृति प्रश्नमंच तथा संस्कृति ज्ञान परीक्षा का आयोजन।

Saturday, June 19, 2010